पशुपालन विभाग के जिम्मेदार ही सरकार के दावों की गोंडा में निकाल रहे हवा
गोंडा। प्रदेश सरकार के लाख दावा,कोशिशो के बावजूद भी जनपद में पशुपालन विभाग बेपटरी पर है।और गो वंश संरक्षण की तो बात छोड़ो यहां इलाज के भी लाले पड़े हैं। जिले के मुख्य पशु अधिकारी तक को जरा भी कार्यवाही का डर नहीं है। खुले शब्दों में मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी कह रहे हैं कि जाओ डी एम से कह दो।
पशु संरक्षण सहित बेजुबानों के चिकित्सा को लेकर जहां प्रदेश सरकार निरंतर प्रयास करते हुए नए-नए कदम उठाकर व्यवस्था में लगी है। ठीक उसके विपरीत गोंडा में पशुपालन विभाग के जिम्मेदार सूरज ढलते ही फोन तक उठाना मुनासिब नहीं समझते हैं।और काफी प्रयास के बाद जब फोन उठाते भी हैं। तो साफ शब्दों में जवाब देते हुए कह देते हैं कि पशु चिकित्सालय में इमरजेंसी डॉक्टरों की रात के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं है। इसके बाद जब पशु चिकित्सा अधिकारी से यह कहा जाता है की अनुकंपा के आधार पर अहेतुक सहायता कर दीजिए, तो हो सकता है बेजुबान की जान बच जाए फिर भी पशु चिकित्सा के अधिकारी के सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।अंत में जब कहा जाता है कि जिलाधिकारी से कहा जाएगा तो जवाब होता है, जाओ कह दो। अब ऐसे में पशु चिकित्सा अधिकारी के उक्त बातों से उनकी संजीदगी साफ झलक रही है।और प्रदेश सरकार के दावों पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं।वहीं सूत्रों की माने तो पशु चिकित्सा अधिकारी जनपद के एक बयो वृद्ध अधिकारी हैं, और शीघ्र ही सेवानिवृत्ति भी होने वाले हैं।उसके बावजूद भी ऐसे जिम्मेदार पद पर रहते हुए भी मानवता छू तक नहीं गई है।
हुआ यह कि मनकापुर तहसील मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर पंडितपुर गांव में सोमवार की शाम को बंदरों के घायल होने की सूचना आई तो गांव वाले दौड़कर निजी प्रयास से बंदर को सुरक्षित करते हुए वन विभाग तथा पशुपालन विभाग के अधिकारियों को फोन करना शुरू किया तो, मनकापुर में पशुपालन के पशु डॉक्टर ने कहा कि जब रेंजर साहब लिखकर देंगे तभी हम इलाज करेंगे तब गांव वालों ने वन क्षेत्राधिकारी मनकापुर को फोन करके सारी बात से अवगत कराया, तो उन्होंने कहा अभी देखा जा रहा है। लेकिन काफी देर बीतने के बाद कोई सहायता नहीं पहुंची। तो मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी गोंडा से संपर्क किया गया और अनुनय विनय करते हुए कहा गया कि किसी प्रकार से अनुकंपा के आधार पर बंदर का इलाज करवा दीजिए तो हो सकता है बेजुबान की जान बच जाए! लेकिन पशु चिकित्सा अधिकारी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा उन्होंने यहां तक कह दिया कि हां रात में इमर्जेंसी में कोई व्यवस्था नहीं है जाओ डी एम से कह दो। अब ऐसे में प्रश्न बनता है कि क्या पशु दिन में ही बीमार होते हैं रात में पशुओं को इलाज की आवश्यकता नहीं होती है?क्या प्रदेश सरकार के दावे खोखले हैं?और इन्हीं लोगों के बल पर सरकार पशुओं को संरक्षित करने की बात करती है।इन तमाम प्रश्नों के बाद गोंडा में सरकार के दावों का उन्हीं के अधिकारी हवा निकालने में लगे हैं।तो पशु संरक्षण कैसे हो सकता है।
डायल 112 को बुलाकर गांव वालों ने बंदर के इलाज की लगाई गुहार
इतना कुछ होने के बावजूद जब कोई सहायता नहीं पहुंची तो मरता क्या ना करता के सूत्र पर गांव वालों ने डायल 112 पुलिस को सूचना देते हुए मौके पर बुला लिया और बंदर के इलाज की गुहार लगाई,तो पंडितपुर में पहुंची 112 डायल टीम ने भी स्थिति देख कर किनारा कस लिया। हालांकि पुलिस इलाज में कर भी क्या सकती थी।
गोंडा से पं बागीश तिवारी की रिपोर्ट