खेतों से निकलकर सरकारी अफसर बनने तक का सफर तय किया राजकमल शुक्ल ने। जानिए कैसे गांव की तंग गलियों से निकलकर उन्होंने बड़ी उपलब्धि हासिल की।
संघर्ष की कहानी: खेतों से निकला एक सितारा, अब सरकारी अफसर बने राजकमल शुक्ल!
नागेंद्र प्रताप शुक्ला
खीरी। कभी गांव के गड्ढों से होकर पैदल स्कूल जाने वाला लड़का, आज पूरे क्षेत्र की शान बन गया है। दरअसल, मंगलवार को घोषित हुए उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन निदेशालय के नतीजों में दुजई पुरवा निवासी राजकमल शुक्ल ने बाज़ी मार ली है। जैसे ही उनका नाम चयनित अभ्यर्थियों की सूची में आया, गांव में खुशी की लहर दौड़ गई।
राजकमल का सफर सिर्फ एक नौकरी पाने का नहीं, बल्कि जज्बे, मेहनत और तपस्या का प्रतीक है। विकास खंड बिजुआ के गांव दरियाबाद के इस छोटे से मजरे में जन्मे राजकमल के पिता बिजेंद्र कुमार एक साधारण किसान हैं। घर में आर्थिक तंगी का आलम यह था कि न तो किताबें आसानी से मिलती थीं, न ही कोचिंग का सपना देखा जा सकता था।
गांव में स्कूल नहीं था, तो बचपन में राजकमल रोज़ाना दूसरे गांव तक पैदल चलकर पढ़ने जाते थे। किसी भी सुविधा की कमी ने उनके हौसले को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद भी हालात इतने नहीं थे कि बाहर रहकर तैयारी कर सकें, इसलिए राजकमल ने खेतों और किताबों के बीच संतुलन बनाते हुए संघर्ष जारी रखा।
राजकमल अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं, लेकिन आज वह पूरे परिवार के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। मंगलवार को जैसे ही उनका चयन हुआ, घर पर बधाइयों का तांता लग गया। गांववालों ने मिठाइयां बांटी, एक-दूसरे को गले लगाकर खुशी जताई।
राजकमल की सफलता न केवल उनके परिवार की मेहनत का फल है, बल्कि उन हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो अभावों में भी सपनों को जिंदा रखते हैं।