लखीमपुर के जिला अस्पताल में भर्ती दो मानसिक रूप से अस्वस्थ लावारिस मरीजों को भरतपुर स्थित अपना घर आश्रम भेजा गया। डॉक्टरों और स्टाफ की सेवा ने रच दी इंसानियत की मिसाल।
जिनका कोई नहीं था, अब उनका भी है "अपना घर": लखीमपुर के दो लावारिस मरीजों को मिला नया आश्रय
कमलेश
लखीमपुर खीरी |जिला चिकित्सालय में महीनों से बेसुध पड़े दो लावारिस मरीजों की तकदीर अब बदल चुकी है। जिनके नसीब में सिर्फ अस्पताल का बिस्तर और चुप्पी थी, उन्हें अब "अपना घर आश्रम भरतपुर (राजस्थान)" में नया जीवन, नया ठिकाना और अपने जैसे अपनों का साथ मिल गया है।
कहानी अस्पताल से आश्रम तक- इंसानियत की मिसाल बनी लखीमपुर की मेडिकल टीम
स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, मोतीपुर ओयल से शुरू हुई यह कहानी सिर्फ एक स्थानांतरण नहीं, बल्कि दया, सेवा और मानवता की कहानी है।
सीएमएस डॉ आर.के. कोली बताते हैं कि ये दोनों मानसिक रूप से अस्वस्थ मरीज लंबे समय से अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती थे। उनके पास न कोई रिश्तेदार आया, न कोई खबर लेने वाला।
लेकिन डॉक्टरों, नर्सों और सफाई कर्मचारियों ने इन ‘लावारिसों’ को कभी अकेला नहीं छोड़ा। विशेष रूप से नर्सिंग ऑफिसर वर्षा सिंह ने दिन-रात इनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी दवा से लेकर भोजन और देखरेख तक की पूरी जिम्मेदारी अस्पताल ने निभाई।
काउंसलर की मेहनत और इंसानियत की जीत
इन बेसहारा मरीजों के लिए काउंसलर देवनंदन श्रीवास्तव और हेल्प डेस्क मैनेजर सुरेंद्र कश्यप ने भरतपुर स्थित "अपना घर आश्रम" से संपर्क साधा। आश्रम प्रबंधन ने न केवल संपर्क स्वीकारा बल्कि खुद अपनी टीम भेजकर इन मरीजों को आदरपूर्वक लखीमपुर से अपने साथ ले गए।
शनिवार को पहुंचे ड्राइवर रूप सिंह और केयरटेकर गोकुल को अस्पताल प्रशासन ने रुकने-खाने की व्यवस्था भी करवाई, और रविवार सुबह दोनों मरीजों को विदा किया गया।
सीएमएस ने दिया भरोसा “मैं उनके हालचाल लेता रहूंगा”
सीएमएस डॉ कोली ने भावुक होते हुए कहा – "अब वे मरीज अकेले नहीं हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से आश्रम से संपर्क बनाए रखूंगा और समय-समय पर उनके स्वास्थ्य, भोजन और जीवनशैली की जानकारी लेता रहूंगा। ज़रूरत पड़ी तो भविष्य में अन्य बेसहारा मरीजों को भी इसी तरह नया जीवन देने का प्रयास किया जाएगा।"