गोंडा जिले में 163 स्कूल और 18 मदरसे बिना मान्यता के संचालित पाए गए। डीएम ने 15 दिन में इन्हें बंद कर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। जानें पूरी कार्रवाई।
15 दिन का अल्टीमेटम: गोंडा में 163 स्कूल और 18 मदरसे बने शिक्षा की आड़ में 'गैरकानूनी अड्डे', डीएम का सख्त एक्शन
पंश्याम त्रिपाठी/बनारसी मौर्या
गोंडा। जिले में शिक्षा व्यवस्था की आड़ में चल रहे अवैध स्कूलों और मदरसों पर अब प्रशासन ने तलवार चला दी है। जिला प्रशासन ने बिना मान्यता के चल रहे 163 निजी स्कूलों और 18 मदरसों को 15 दिन के भीतर बंद करने का अल्टीमेटम देते हुए संबंधित अफसरों को एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई का निर्देश दिया है।
तहसीलवार सूची तैयार, डीएम ने दिए सीलिंग के आदेश
डीएम ने जिलेभर में बगैर मान्यता संचालित हो रहे इन संस्थानों की सूची जारी कर दी है। प्रशासनिक जांच में सामने आया कि सबसे ज्यादा 47 अवैध स्कूल तरबगंज तहसील में, 40 स्कूल मनकापुर में, 41 स्कूल सदर और 35 स्कूल कर्नलगंज तहसील में चल रहे हैं। साथ ही बभनजोत ब्लॉक के अंतर्गत 15 मदरसे भी मान्यता के बिना संचालित हो रहे हैं।
कानूनी शिकंजा कसने की तैयारी
जिलाधिकारी ने इस कार्रवाई के लिए गांधीवादी चेतावनी के साथ प्रशासनिक सख्ती की दोहरी नीति अपनाई है। सभी तहसीलदारों, थाना प्रभारियों और खंड शिक्षा अधिकारियों को पत्र भेजकर निर्देशित किया गया है कि 15 दिनों के भीतर इन संस्थानों को सील कर, संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और रिपोर्ट बीएसए कार्यालय को सौंपी जाए।
इन मदरसों पर गिरी गाज, नाम हुए सार्वजनिक
प्रशासन ने उन मदरसों की पहचान भी कर ली है, जो मान्यता के बिना वर्षों से संचालित हो रहे थे। इनमें मदरसा अल्मरबा अरेबिक कॉलेज, मदरसा अहले सुन्नत गरीब नवाज और मदरसा निजामिया अहले सुन्नत जैसे नाम शामिल हैं। दौलतपुर ग्रांट खम्हरिया समेत कई अन्य क्षेत्रों के मदरसों की सूची भी सार्वजनिक कर दी गई है।
शिक्षा की आड़ में कानून का मज़ाक
प्रशासन का कहना है कि इन संस्थानों में न तो सरकार की गाइडलाइन मानी जा रही थी और न ही शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित हो रही थी। कहीं बच्चे बिना सुरक्षा के पढ़ रहे हैं तो कहीं टीचिंग स्टाफ बिना योग्यता के पढ़ा रहा है। ऐसे में यह कार्रवाई बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
सिर्फ चेतावनी नहीं, कार्रवाई भी तय
डीएम ने साफ किया है कि यह सिर्फ एक औपचारिक आदेश नहीं, बल्कि ज़िम्मेदार अफसरों की प्रभावशीलता की परीक्षा भी होगी। यदि कार्रवाई में ढिलाई बरती गई तो संबंधित अफसरों की जिम्मेदारी तय की जाएगी।